इसमें अगले तीन महीने तक गरीबों को राशन में पांच किलो गेहूं या चावल और एक किलो कोई भी दाल मुफ्त देने की बात शामिल है। इस देशव्यापी बंद से कारखाने और संयंत्र ठप हो गये हैं। इसके साथ अस्थायी तौर पर हजारों लोग बेरोजगार हुए हैं।
मुंबई। रिर्जर्व बैंक ने कोरोना वायरस महामारी के आर्थिक प्रभाव से निपटने को लेकर बैंकों के धन की लागत कम करने और उनके पास नकदी की उपलब्धता बढाने के साथ-साथ संकट के इस दौर कर्जदारों को कर्ज की मासिक किस्त जमा करने की तीन माह की मोहलत दिलाने जैसे कई बड़े कदमों की शुक्रवार को घोषणा की। अप्रत्याशित और लीक से हट कर किए गए इन निर्णयों में महत्वपूर्ण रेपो दर में 0.75 प्रतिशत की एक दशक से भी अधिक समय की सबसे बड़ी कटौती और 3.74 लाख करोड़ रुपये की नकदी डाले जाने के उपाय शामिल हैं। रिजर्व बैंक की इस घोषणा के कुछ ही घंटे बाद भारतीय स्टेट बैंक ने कहा कि वह नीतिगत दर में कटौती का पूरा लाभ ग्राहकों को देगा। आर्थिक संकट से निपटने के लिये मौद्रिक नीति के महत्व को समझते हुए रिजर्व बैंक ने पूर्व घोषित कार्यक्रम से एक सप्ताह पहले ही मौद्रिक नीति समिति की बैठक की और कार्यशील पूंजी पर ब्याज भुगतान भी तीन महीने के टालने की बैंकों को अनुमति दी। उसने यह कहा कि वह जबतक आर्थिक वृद्धि पटरी पर लाने तथा कोरोना वायरस के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को कम करने के लिये जरूरी होगा, नरम रुख बरकरार रखेगा। केंद्रीय बैंक ने बैंकों की फौरी नकदी की जरूरत पर लगने वाले ब्याज यानी रेपो दर 0.75 प्रतिशत घटाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया जो 11 साल का न्यूनतम स्तर है। अबतक यह 5.15 प्रतिशत थी। इससे लोगों को सस्ता कर्ज मिलेगा। वहीं नकदी बढ़ाने के लिये नकद अरक्षित अनुपात (सीआरआर) एक प्रतिशत कम कर 3 प्रतिशत कर दिया गया है। सीआरआर के तहत बैंकों को जमा राशि का एक हिस्सा रिजर्व के रूप में अलग रखना पड़ता है। नीतिगत दर यानी रेपो में यह कटौती अप्रैल 2009 के बाद सबसे बड़ी है।वर्ष 2008 के वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट के जवाब में उस समय आरबीआई ने नीतिगत दर में बड़ी कटौती की थी। शुक्रवार की कटौती के बाद रेपो दर अक्टूबर 2004 के पश्चात निचले स्तर पर आ गयी है। केंद्रीय बैंक ने रिवर्स रेपो दर में 0.90 प्रतिशत की कटौती कर 4 प्रतिशत पर लाया गया है। इससे बैंक आरबीआई के पास पैसा रखने को लेकर आकर्षित नहीं होंगे।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने नीतिगत पहल की घोषणा करते हुए कहा कि एक मार्च 2020 की स्थिति के अनुसार मासिक किस्त से जुड़े सभी प्रकार के कर्ज पर ईएमआई तीन महीने रोके जाने की अनुमति वाणिज्यिक बैंकों को दी गयी है। इससे मकान और वाहन खरीदारों के साथ रीयल एस्टेट क्षेत्र को भी राहत मिलेगी जहां निर्माण गतिविधियां ठप है। इसके अलावा कार्यशीलपूंजी के ब्याज पर भी तीन महीने की रोक की अनुमति दी गयी है। दास ने कहा कि सीआरआर में कटौती और रेपो के आधार पर प्रतिभूतियों की नीलामी जैसे कदमों से वित्तीय संस्थानों के पास 3.74 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी आएगी जो वित्त वर्ष 2019-20 के जीडीपी का करीब 2 प्रतिशत है। आरबीआई ने हाल के दिनों नकदी बढ़ाने के लिये जो कदम उठाये हैं, उन सबको मिलाकर यह जीडीपी का 3.2 प्रतिशत बैठेगा। इससे पहले केंद्रीय बैंक ने 2019 में लगातार पांच बार में रेपो दर में 1.35 प्रतिशत की कटौती की थी। हालांकि उच्च मुद्रास्फीति का हवाला देते हुए दिसंबर से रेपो दर को यथावत रखा गया था। हालांकि इस बार मौजूदा हालात को देखते हुए आरबीआई ने देश की आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ मुद्रास्फुीति के बारे में कोई परिदृश्य जारी नहीं किया। दास ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में 5 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने के लिये जनवरी-मार्च तिमाही में 4.7 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि की जरूरत है लेकिन कोरोना वायरस महामारी के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को देखते हुए अब मुश्किल लगता है। इससे एक दिन पहले ही कोरोना वायरस महामारी के कारण 21 दिन के ‘लॉकडाउन’ से निपटने के लिये सरकार ने गरीबों और जरूरमंदों के के लिये 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की।